बुधवार, 27 मई 2020

हिन्दी समास

 समास का अर्थ - संक्षेप |
परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक पदों के मेल से नया शब्द बनने की प्रक्रिया को समास कहते हैं
 समास के भेद समास के 6 भेद होते हैं 
(1)अव्ययीभाव समास 
(2)तत्पुरुष समास 
(3)कर्मधारय समास
(4) दिगु समास 
(5)बहुव्रीहि समास 
(6)द्वंद समास 

(1)अव्ययीभाव समास= जिस समास का पहला पद प्रधान तथा अवयव होता है और समस्त पद भी अवयव क्रिया विशेषण का कार्य करते हैं उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं
 अव्ययीभाव को समाज को समझने के लिए ( अनु ,आ ,प्रति ,यथा ,यावत, हर ,भर )  याद रख कर इस समास.को  समझा जा सकता है 
जैसे - 
 आमरण - मरने तक 
यथाशक्ति -शक्ति के अनुसार
आजीवन -जीवन भर 
भरपेट -पेट भर के

 (2) तत्पुरुष समास -तत्पुरुष समास में उत्तर पद प्रधान होता है और पूर्व पद गोण होता है तत्पुरुष समास की बनावट में समस्त पदों के बीच में आने वाले कारक चिन्ह का लोप हो जाता है

                     कर्ता   - ने 
                     कर्म   - को 
                     करण -  से , के द्वारा 
                    संप्रदान  - के लिए 
                  अपादान   -से।     
                   संबंध     -   का , के , की 
                  अधिकरण -  में  , पर  
                   का लोप हो जाता है 
 
तत्पुरुष समास के 6 भेद माने गए हैं
 (1) कर्म तत्पुरुष 
(2) करण तत्पुरुष 
(3) संप्रदान तत्पुरुष 
(4) अपादान तत्पुरुष 
(5) संबंध तत्पुरुष 
(6) अधिकरण तत्पुरुष 


(1) कर्म तत्पुरुष  - इस समास.में कर्म कारक की विभक्ति को का लोप हो जाता है जैसे - 

ग्राम गत   -   ग्राम को गया हुआ 
सर्वप्रिय    -   सबको प्रिय 
माखन चोर   -  माखन को चुराने वाला
 चिड़ीमार     -  चिड़िया को मारने वाला 

(2) करण तत्पुरुष  = इस.समास में करण कारक की विभक्ति से या के द्वारा का लोप होता है जैसे - 
 
रेखांंकीत  --रेखा से अंकित 
हस्तलिखित   -  हाथ से लिखित 
मनगढ़ंत      -   मन से गड़ा   हुआ 
सुर रचित      - सुर के द्वारा रचित 

(3)  संप्रदान तत्पुरुष = समास इस समाज में संप्रदान कारक की विभक्ति "के लिए" का लोप होता है जैसे-

 हवन सामग्री   - हवन के लिए सामग्री 
देश भक्ति       -  देश के लिए भक्ति
 विद्यालय       -   विद्या के लिए आलय 
हथकड़ी.    -.     हाथ के लिए कड़ी 

(4)अपादान तत्पुरुष = समास इस समाज में अपादान कारक की विभक्ति "से "(अलग होने का भाव )का लोप. होता है जैसे - 


भयभीत  -  भय से भीत  
रोगमुक्त    -  रोग से मुक्त 
पद मुक्त     -  पद से मुक्त 
ऋण मुक्त     - ऋण से मुक्त  
  
(5)  संबंध तत्पुरुष = समास इस समाज में संबंध कारक की विभक्ति "का, के ,की "का लोप होता है जैसे - 
 
पवन पुत्र  - पवन का पुत्र 
राज्यसभा   -  राजा की सभा 
समयानुसार  - समय के अनुसार 
राजकुमार    -  राजा के कुमार 

(6)  अधिकरण तत्पुरुष समास=  इस  समाज  मैं अधिकरण कारक की विभक्ति " मे, पर "का लोप हो जाता है जैसे - 
 
वनवास  -  वन में वास 
आत्मविश्वास   - आत्मा पर विश्वास  
 गृह प्रवेश  -  गृह में प्रवेश 
घुड़सवार   -  घोड़े पर सवार  

(3) कर्मधारय समास =  जिस समास के दोनों पदों में उपमय - उपमान या विशेषण - विशेष्य का संबंध हो वहां कर्मधारय समास होता है 
 इसकी पहचान यह है कि  समास का विग्रह करने पर   (है  जो.) और (के सामान)   आता है जैसे - 

कमलनयन -   कमल के समान नयन 
घनश्याम    -  घन के समान श्याम
  नीलगाय   - नीली है जो गाय
 महात्मा    -   महान है जो आत्मा


(4) द्विगु समास  = जिस समस्त पद में पहला पद संख्यावाची हो विग्रह करने पर समूह अथवा समाहार का प्रयोग होता है वहां द्विगु समास होता है जैसे - 

नवरात्र   -   नव रातों का समूह 
त्रिफला   -  3 फलों का समाहार
 चौराहा   -  चार राहों का समूह 
पंचवटी     -   5 वटो का समूह



(5)   बहुव्रीहि समास =   जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान ना हो तथा समस्त पद किसी अन्य अर्थ का बोध कराता हो वहां बहुव्रीहि समास होता है जैसे-  

 नीलकंठ  -  नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव 
पीतांबर   -   पीला है अंबर जिसका अर्थात श्री कृष्ण 
 लंबोदर  -   लंबा है    उधर जिसका अर्थात गणेश
 दशानन    -   10 है आनंद जिसके अर्थात रावण 


(6)  द्वंद समास  =  जिस समस्त पद में दोनों पद समान हो अर्थ की दृष्टि से स्वतंत्र हो तथा विग्रह करने पर और एवं अथवा या आदि का प्रयोग होता है वहां द्वंद समास होता है जैसे -  
 अपना- पराया =अपना और पराया
 गुरु - शिष्य   =  गुरु और शिष्य 
पाप  - पुण्य =   पाप और पुण्य 
राजा - रंक    =  राजा और रंक 
खट्टा -- मीठा  =  खट्टा या मीठा

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